नई दिल्ली लंबे वक्त से उठ रही अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की आबादी की गिनती की मांग जल्द पूरी होती नहीं दिख रही है। सूत्रों की मानें तो इस साल की जनगणना में भी ओबीसी जातियों की आबादी की गिनती की उम्मीद लगभग खत्म हो गई है। सूत्रों का कहना है कि इस संबंध में पहले ही फैसला ले लिया गया था और निकट भविष्य में सरकार की ओर से फैसले में बदलाव की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। सपा, आरजेडी, एनसीपी जैसी विपक्षी पार्टियां तो पिछले कुछ वक्त से की मांग कर ही रहीं हैं, सत्ताधारी बीजेपी के बड़ी सहयोगी जेडीयू भी इसके पक्ष में है। केंद्र ने की मांग को ठुकराया हाल ही में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने केंद्र को चिट्ठी लिखकर एसएसी-एसटी और अल्पसंख्यकों की तर्ज पर जातीय जनगणना की मांग की थी। केंद्र से ओबीसी जनगणना की मांग पिछले महीने हुई राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की बैठक के बाद की गई है। इस बैठक में राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी समाज से आने वाले लोगों की गिनती की मांग वाली सुप्रीम कोर्ट की याचिका पर चर्चा हुई। बैठक में पैनल ने फैसला किया कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी जनगणना से जुड़ी याचिका का समर्थन करना चाहिए, इसके बाद आयोग की ओर से समाजिक न्याय मंत्रालय को पत्र लिखा गया। सूत्र बता रहे हैं कि संभव है कि आयोग ने सीधे देश में जनगणना की जिम्मेदारी संभालने वाले 'रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया' को चिट्ठी लिखी हो। आखिरी बार साल 1931 में हुई थी ऐसी जनगणना अगर कोरोना महामारी की वजह से पिछले साल चीजें प्रभावित नहीं होतीं तो अब तक हाउस लिस्टिंग का काम पूरा हो गया होता। हालांकि जनगणना की प्रक्रिया में देरी ने ओबीसी गणना का मांग करने वालों को थोड़ा और वक्त दे दिया है। गौरतलब है कि ओबीसी समाज की संख्या पता लगाने के लिए आखिरी बार ऐसी जनगणना 1931 में हुई थी, लेकिन साल 2018 में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 2021 में ओबीसी जनगणना की बात कही थी। हालांकि मोदी सरकार को दूसरा कार्यकाल शुरू होने के बाद से केंद्र इस जनगणना को लेकर पलट गया। विपक्षी पार्टियां लंबे वक्त से कर रहीं जाति आधारित जनगणना की मांग आपको बता दें कि विपक्षी पार्टियां जैसे आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, अखिलेश यादव समेत बीजेपी के कई नेता भी ओबीसी जनगणना की मांग पिथले कुछ वक्त से कर रहे हैं। लालू प्रसाद यादव अकसर और पीएम नरेंद्र मोदी पर जानबूझकर जाति आधारित जनगणना रोकने का आरोप लगाते रहते हैं। सपा नेता अखिलेश यादव भी लगातार जाति आधारित जनगणना की मांग करते रहें हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस वाली महाविकास अघाड़ी सरकार ने भी केंद्र से जातिगत जनगणना की मांग की है, पिछे साल विधानसभा में इससे संबंधित प्रस्ताव भी पारित किया जा चुका है। बीजेपी के 'अपने' भी कर चुके हैं मांग ऐसा नहीं है कि केवल विपक्षी पार्टियां ही जाति ओबीसी जातियों की जनसंख्या पता करने की मांग कर रही हैं, बीजेपी की सहयोगी जेडीयू के नेता और बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने भी हाल ही में जाति आधारित की जनगणना की मांग उठाई थी। नीतीश का तर्क है कि जातियों की जनसंख्या का सही आंकड़ा पता चलने पर सरकार को उसी अनुसार योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। बीजेपी के कुछ नेता भी ओबीसी जनगणना की मांग कर चुके हैं, पिछले साल सांसद गणेश सिंह ने लोकसभा में ओबीसी जनगणना की मांग की थी। आखिर क्यों जाति आधारित जनगणना पर जोर दे रहा है विपक्ष जेडीयू, आरजेडी, समाजवादी पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों की जोरशोर से जाति आधारित जनगणना की मांग की वजह समझने के लिए आपको इन पार्टियो की राजनीति को समझना होगा। चाहे नीतीश हो, लालू हों या अखिलेश ये सभी नेता पिछड़े समाज से आते हैं और पिछड़ी जातियों की राजनीति करते हैं। इन पार्टियों का मानना है कि देश में ओबीसी की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है, जबकि इस वर्ग को इस हिसाब से शिक्षा, रोजगार और अन्य संसाधानों में हिस्सेदारी नहीं मिली है। इसलिए जाति आधारित जनगणना कराई जानी चाहिए, जिससे कि आबादी के अनुपात में सबको प्रतिनिधित्व मिल सके।
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