नई दिल्ली संसद के मौजूदा बजट सत्र में किसान मुद्दों को लेकर भले ही विपक्ष लोकसभा को बाधित करने में सफल रहा हो, लेकिन असलियत है कि विपक्षी खेमे में जिस तरह का आपसी तालमेल व रणनीति होनी चाहिए, उसका इस बार अभाव देखने को मिल रहा है। विपक्ष इसके लिए एक बड़ी वजह कांग्रेस को मान रहा है। वहीं, कांग्रेस के भीतर भी इस मुद्दे को लेकर आपस में चर्चा और नाराजगी है। हालांकि शुरू में राष्ट्रपति के अभिभाषण को लेकर विपक्ष ने एक संयुक्त रणनीति बनाई और सामूहिक रूप से राष्ट्रपति के संबोधन का बहिष्कार किया। लेकिन माना जा रहा है कि कांग्रेस के भीतर आपसी तालमेल की कमी के चलते विपक्ष का फ्लोर प्रबंधन ढंग से नहीं हाे पा रहा। जिसे लेकर विपक्षी दलों के साथ-साथ खुद पार्टी के भीतर भी असहजता है। तालमेल की कमी के चलते राज्यसभा में नाकाम रही रणनीति सूत्रों के मुताबिक, विपक्ष की रणनीति सत्र के पहले ही हफ्ते में दोनों ही सदन को बाधित करने की थी। विपक्ष चाहता था कि राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करके सरकार पर जो दबाव बना था, वो आगे भी जारी रहता। लेकिन आपसी तालमेल के चलते राज्यसभा में यह रणनीति नाकाम रही। वहां नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने इसकी शुरुआत कर दी। जिसके बाद दूसरे दलों को भी आगे आना पड़ा। बताया जाता है कि टीएमसी नेता डेरेक ओ ब्रायन दिल्ली में नहीं थे, लेकिन उन्हें अगले दिन आना पड़ा। वहीं इसे लेकर खुद कांग्रेस के पार्टी के भीतर भी नाराजगी है। कांग्रेस सांसदों ने भी अपना असंतोष अपने नेता से जताया। लोकसभा में किसानों के मुद्दे पर अलग चर्चा चाहती है कांग्रेस दूसरी ओर लोकसभा में चर्चा शुरू न होने के पीछे भले ही सरकार की ओर से संसदीय कार्यमंत्री ने कांग्रेस के ऊपर अपनी बात से पलटने का आरोप लगाया हो, लेकिन सच्चाई यह है कि यहां कांग्रेस राज्यसभा की तरह राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ ही किसान चर्चा कराए जाने के पक्ष में नहीं है। वह लोकसभा में दोनों पर अलग-अलग चर्चा चाहती है। इसीलिए सरकार आरोप लगा रही है कि कांग्रेस पहले साथ में चर्चा के लिए राजी होने के बाद बाद में पलट गई। कांग्रेस जिस तरह से खुल कर किसानों का समर्थन कर रही है, उसके मद्देनजर वह लोकसभा में इस मुद्दे पर अलग चर्चा के द्वारा एक संदेेश देना चाहती है। दोनों सदनों में अलग-अलग रणनीति को लेकर दिखी नाराजगी अलग चर्चा के पीछे पार्टी के सीनियर नेता का कहना था कि राष्ट्रपति अभिभाषण में धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान एक शिष्टाचार के दायरे में रह कर आप अपनी बात कर सकते हैं, क्योंकि यहां मामला राष्ट्रपति व उनके पद की गरिमा से जुड़ा है। जबकि किसान मुद्दे पर कांग्रेस जिस तरह से आक्रामक रुख दिखाती रही है, उसे देखते हुए अलग चर्चा में ही उसे सरकार को घेरने की गुंजाइश मिल सकती है। चर्चा यह भी है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष भी किसान मुद्दे चर्चा में भाग ले सकते हैं। राहुल लगातार इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, दोनों सदनों में अलग-अलग रणनीति को लेकर पार्टी में नाराजगी भी दिखी। सांसदों से लेकर पार्टी के भीतर इसे लेकर चर्चा है। कहा जाता है कि इसे लेकर हाइकमान ने अपनी नाखुशी जाहिर की है। महसूस हो रही अहमद पटेल की कमी पिछले दिनों धरनास्थल पर किसानों से मिलने विपक्ष के तमाम नेताओं का एक दल गया, जिसमें कांग्रेस शामिल नहीं थी। इस बारे में विपक्षी दल के एक नेता का कहना था कि वहां विपक्ष की रणनीति पर चर्चा के लिए कोई नियत व्यक्ति नहीं है। कहा जाता है कि पहले अहमद पटेल जैसे नेता काफी सक्रिय हुआ करते थे, लेकिन उनके बाद ऐसा कोई नेता सामने नहीं आ पा रहा है, जिसका तमाम दलों के साथ ठीकठाक रैपो हो। हालांकि आजाद भी इस दिशा में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। लेकिन इस बार उनकी सक्रियता भी वैसी नहीं महसूस की जा रही। इसके पीछे वजह मानी जा रही है कि आजाद का कार्यकाल आगामी 15 फरवरी को खत्म हो रहा है।