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Food New York TimesBy BY NIKITA RICHARDSON Via NYT To WORLD NEWS

Friday, November 26, 2021

वैक्सीनेशन में आप किसी भी प्रकार का संदेह नहीं कर सकते हैं,टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभाव वाली याचिका पर SC की दो टूक

नयी दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह देश में कोविड-19 रोधी टीकाकरण कार्यक्रम पर इस दौर में संदेह व्यक्त नहीं कर सकता और लोगों के टीकाकरण में ढिलाई की बात को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि करोड़ों लोगों ने टीका लगवा लिया है और यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी इसे मंजूरी दी है तथा पूरी दुनिया टीका लगवा रही है। टीकाकरण पर निगेटिव प्रभाव न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने याचिकाकर्ता अजय कुमार गुप्ता तथा अन्य को याचिका की प्रति सॉलिसिटर जनरल को उपलब्ध कराने को कहा और उनका जवाब मांगा। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, हमारे पास टीकाकरण के बाद किसी भी प्रतिकूल प्रभाव की निगरानी के लिए एक प्रणाली, दिशा-निर्देश मौजूद हैं। हमेशा असहमति व्यक्त करने वाले होंगे, लेकिन उनके अनुसार नीति नहीं बनाई जा सकती।' वैक्सीनेशन पर संदेह नहीं कर सकते- सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा, 'हमें समग्र रूप से राष्ट्र की भलाई देखनी है। दुनिया ने एक अभूतपूर्व महामारी देखी है, जिसे हमने अपने जीवनकाल में नहीं देखा है। हम इस दौर में टीकाकरण कार्यक्रम पर संदेह नहीं कर सकते हैं। यह सर्वोच्च राष्ट्रीय महत्व की बात है कि लोगों का टीकाकरण हो। लोगों का टीकाकरण न होने संबंधी ढिलाई की कीमत हम स्वीकार नहीं कर सकते।' टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभाव के कारण हजारों मौत गुप्ता और अन्य द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभाव के कारण हजारों मौत हुई हैं और केंद्र को इस टीकाकरण को पूरी तरह से स्वैच्छिक बनाने का निर्देश दिया जाना चाहिए। इसमें केंद्र को यह निर्देश दिए जाने का भी आग्रह किया गया है कि यूरोपीय देशों से रिपोर्ट मांगी जाए जहां कोविशील्ड के इस्तेमाल को बंद कर दिया गया या इसका इस्तेमाल सीमित कर दिया गया है। टीकाकरण के बाद हजारों की मौत का दावा पीठ ने कहा कि टीकाकरण कार्यक्रम के बारे में हमेशा 5-10 साल अध्ययन होगा लेकिन वह केवल यह चाहती है कि लोग सुरक्षित रहें और मृत्यु दर कम हो। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि देश के विभिन्न समाचार पत्रों में खबरें आई हैं कि टीकाकरण के बाद हजारों लोगों की मौत और गंभीर प्रतिकूल प्रभावों के मामले सामने आए हैं। पीठ ने कहा, ‘मौतों को सिर्फ टीकाकरण से नहीं जोड़ा जा सकता, इसके और भी कारण हो सकते हैं।’ गोंजाल्विस ने रखा अपना तर्क गोंजाल्विस ने कहा कि यह संभव है कि मौतों का कारण टीकाकरण नहीं रहा हो लेकिन इन मौतों की जांच की जानी चाहिए कि क्या टीकाकरण के कारण मस्तिष्क या हृदय में थक्का बना, जिसके कारण दिल का दौरा पड़ा या मस्तिष्काघात हुआ। उन्होंने तर्क दिया कि टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभाव की घटनाओं से संबंधित 2015 के दिशा-निर्देशों के तहत स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, जैसे कि आशा और आंगनवाड़ी कर्मियों को टीकाकरण कराने वाले व्यक्ति के पास एक विशिष्ट अवधि के लिए जाना पड़ता था और मृत्यु होने की स्थिति में एक विशिष्ट प्रोटोकॉल के तहत पोस्टमॉर्टम कराने का निर्देश था। टीकाकरण के लाभों को भी देखना होगा- चंद्रचूड़ न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘आप अविश्वसनीय नहीं कह सकते। हमें टीकाकरण के लाभों को भी देखना होगा। हम यह संदेश नहीं भेज सकते हैं कि टीकाकरण में कुछ समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे मंजूरी दी है और लाखों लोग इसे लगवा रहे हैं। दुनियाभर में टीकाकरण हो रहा है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी टीकाकरण कार्यक्रम चल रहा है। हम इस पर संदेह नहीं कर सकते।' पीठ ने दिशा-निर्देशों को पढ़ने के बाद कहा कि संशोधित दिशा-निर्देश भी टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभाव की गंभीर और मामूली घटना पर नज़र रखने के लिए निगरानी प्रदान करते हैं और स्वास्थ्य कर्मचारियों, जिनमें आशा कार्यकर्ता शामिल हैं, से मासिक प्रगति रिपोर्ट मांगी जाती है। पीठ ने कहा कि हमेशा अलग-अलग दृष्टिकोण होंगे लेकिन सवाल यह है कि जब उचित दिशा-निर्देश हैं, तो अदालत को टीकाकरण के इस महत्वपूर्ण चरण में हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए। इसने कहा कि याचिका सॉलिसिटर जनरल को दी जानी चाहिए। पीठ ने मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

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