बीती 26 जनवरी ऐसी तारीख है जो किसान आंदोलन को सीधे-सीधे दो हिस्सों में बांट देती है। इससे पहले तक यह आंदोलन जिस लय, ताल और तेवर के साथ चल रहा था, उस दिन की घटनाओं से एक झटके में वह सब बिगड़ता नजर आया। अराजक तत्वों की भीड़ और उसे मिले मीडिया कवरेज ने पूरे आंदोलन की जैसी छवि प्रस्तुत की, उससे सरकार की सारी आशंकाएं सच साबित होती लगने लगीं।
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