नई दिल्ली प्रशासनिक सुधार की दिशा में उठाया गया महत्वाकांक्षी कदम 'लैटरल एंट्री' क्या आरक्षण पर खतरा है? क्या सीनियर अधिकारियों के पद पर सीधी नियुक्ति की इस प्रक्रिया से मौजूदा व्यवस्था प्रभावित होगी? क्या इस नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी रहेगी? क्या लैटरल एंट्री ब्यूरोक्रेसी में 'निजीकरण' की एक कोशिश है? ये सवाल तब उठे हैं जब हाल में सरकार ने संयुक्त सचिव और डायरेक्टर के स्तर पर बहाली के लिए 30 पदों का विज्ञापन जारी किया जिसमें इन पर सीधी नियुक्ति होनी है। विपक्ष के निशाने पर आया कदम इस विज्ञापन के जारी होते ही इस पर सियासत तेज हो गई। एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा, 'बीजेपी खुलेआम अपनों को लाने के लिए पिछला दरवाजा खोल रही है और जो अभ्यर्थी सालों-साल मेहनत करते हैं उनका क्या? बीजेपी सरकार अब ख़ुद को भी ठेके पर देकर विश्व भ्रमण पर निकल जाए वैसे भी उनसे देश नहीं संभल रहा है।' उन्होंने कहा कि जो आईएएस बनने की तैयारी में हैं उनके अवसर छीन लिए गए। आरजेडी सुप्रीमो तेजस्वी यादव ने कहा कि अगर सरकार के लिए ऐसे लोगों की प्रतिभागिता सचमुच अपरिहार्य है तो क्या सारी योग्यता निजी क्षेत्र के लोगों में ही है? अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गों के लोगों को व्यवस्था से धीरे-धीरे बाहर करने और आरक्षण को घटाने का इसे केंद्र सरकार का घृणित प्रयास क्यों नहीं माना जाए। भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर ने कहा कि वह इस मामले में संसद का घेराव करेंगे। यह मसला राज्यसभा में भी उठा था और कई नेताओं ने इस पर सरकार से जवाब भी मांगा। खुद सरकार के अंदर से भी सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने एनबीटी से कहा कि वे भी चाहेंगे कि इन पदों के योग्य आरक्षित वर्ग के जो लोग हों, उनकी नियुक्ति हो। उनकी अनदेखी न होने पाए और जरूरत महसूस होने पर प्रधानमंत्री जी से भी बात करूंगा। अपनों को तरजीह देने का आरोप हालांकि अब तक लैटरल एंट्री पर आम राय पक्ष में आई लेकिन विपक्ष ने इसके बहाने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। इसे सीधा आरक्षण से जोड़ दिया तो कांग्रेस सहित कई दलों ने मोदी सरकार की इस कोशिश को अपने लोगों को ब्यूरोक्रेसी में जगह देने का आरोप लगाया। डीओपीटी सूत्रों के अनुसार सरकार की चिंता आरोपों से अधिक दूसरे दो मुद्दों पर अधिक है। पहला मुद्दा लैटरल एंट्री पर ब्यूरोक्रेसी की चिंता को लेकर है। सूत्रों के अनुसार डीओपीटी के प्रस्ताव पर शुरू में अधिकारियों ने चिंता जताई थी। लेकिन बाद में पीएम के निर्देश पर अधिकारियों की कमिटी बनाई तब इस पर सहमति बनी। दूसरी चिंता इसमें आरक्षण का प्रावधान का न होना है। सरकार पर विपक्ष आरक्षण विरोधी के नाम पर हमला करता रहा है। सरकार ने इसके लिए जो गाइडलाइंस बनाई है, उसके अनुसार केंद्र सरकार में जॉइंट सेक्रेटरी पदों पर लैटरल एंट्री की नियुक्ति में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। राज्यसभा में कई सदस्यों के जवाब पर सरकार की ओर से कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने यह बात संसद के पिछले सत्र में कही थी। कहा गया था कि लैटरल एंट्री के तहत सिंगल पोस्ट काडर में नियुक्ति नहीं है जहां कभी आरक्षण का प्रावधान नहीं रहा है। ऐसे होती है बहाली और प्रावधान डीओपीटी की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार मंत्रालयों में जॉइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टर के पद पर नियुक्ति होगी। इनका टर्म तीन साल का होगा और अगर अच्छा प्रदर्शन हुआ तो पांच साल तक के लिए इनकी नियुक्ति की जा सकती है। इन पदों पर आवेदन के लिए अधिकतम उम्र की सीमा 55 तो न्यूनतम उम्र 40 साल है। इनका वेतन केंद्र सरकार के अंतर्गत जॉइंट सेक्रेटरी वाला होगा। सारी सुविधा उसी अनुरूप ही मिलेगी। इन्हें सर्विस रूल की तरह काम करना होगा और दूसरी सुविधाएं भी इस अनुरूप मिलेंगी। मालूम हो कि किसी मंत्रालय या विभाग में जॉइंट सेक्रेटरी का पद अहम होता है और तमाम बड़ी नीतियों को अंतिम रूप देने में या इसके अमल में इनका खास रोल होता है। इनके चयन के लिए केवल इंटरव्यू होगा और कैबिनेट सेक्रेटरी के नेतृत्व में बनने वाली कमिटी इनका इंटरव्यू लेगी। योग्यता के अनुसार सामान्य ग्रेजुएट और किसी सरकारी, पब्लिक सेक्टर यूनिट, यूनिवर्सिटी के अलावा प्राइवेट सेक्टर में 15 साल का अनुभव रखने वाले भी इन पदों के लिए आवेदन दे सकते हैं। आवेदन में योग्यता इस तरह तय की गई है कि कहीं भी 15 साल का अनुभव रखने वालों की सरकार की टॉप ब्यूरोक्रेसी में डायरेक्ट एंट्री का रास्ता खुल गया है। 2018 में हुई थी 10 पदों पर नियुक्ति इससे पहले 2018 में लैटरल एंट्री के जरिये 10 पदों पर नियुक्ति की गई थी। तब भी इसमें आरक्षण का विवाद उठा था। इसके बाद 2019 में आम चुनाव को देखते हुए इस नियुक्ति के बाद कोई पहल नहीं हुई। 2019 में आम चुनाव जीतने के तुरंत बाद इस दिशा में आगे बढ़ने का संकेत दिया गया लेकिन पिछले साल कोविड संकट के कारण कुछ नहीं हुआ। अब जबकि हालात कुछ सामान्य हुए सरकार ने तुरंत इसे मजबूती से आगे बढ़ाने के संकेत दे दिए। सूत्रों के अनुसार इन 30 पदों पर नियुक्ति के तुरंत बाद फिर बहाली होगी। वहीं केंद्र सरकार लैटरल एंट्री पर उठे विवाद को बेवजह बता रही है। सरकार से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि यूपीए सरकार के समय बनी नीतियों को ही आगे बढ़ाया जा रहा है। इसके लिए उस रिपोर्ट का हवाला दिया गया कि दूसरे प्रशासनिक सुधार के लिए पेश रिपोर्ट में आईएएस की संख्या में लगातार कमी को पूरा करने और एक्सपर्ट की मदद लेने की मंशा से लैटरल एंट्री का रास्ता तलाशने को कहा था। पीएम के बयान के बाद बहस तेज वहीं लोकसभा में पीएम नरेंद्र मोदी के ब्यूरोक्रेसी पर तीखे तंज के बाद भी यह बहस तेज हो गई कि सरकार लैटरल एंट्री पर तमाम विवादों के बीच आगे बढ़ना चाहती है। उन्होंने कहा था कि सब कुछ बाबू ही करेंगे? आईएएस बन गए मतलब वो फर्टिलाइज़र का कारखाना भी चलाएगा, केमिकल का कारखाना भी चलाएगा, आईएएस हो गया तो वो हवाई जहाज़ भी चलाएगा, ये कौन सी बड़ी ताकत बनाकर रख दी है हमने? बाबुओं के हाथ में देश देकर हम क्या करने वाले हैं? हमारे बाबू भी तो देश के हैं, तो देश का नौजवान भी तो देश का है। बता दें कि दूसरे कार्यकाल में मोदी ब्यूराक्रेसी की सुस्ती पर कई बार चिंता व्यक्त कर चुके हैं।
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