नई दिल्ली चीन प्रॉपगैंडा वॉर में माहिर है। उसे पता है कि हाड़ गला देने वाली बर्फीली सर्दी के मौसम में चौबीसों घंटे तैनात रहने का दमखम रखने वाले भारतीय सैनिकों के सामने उसका टिकना नाममुकिन है। इस कारण उसने अपने मुखौटा मीडिया के जरिए अफवाह फैलाया कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के प्लाटून में रोबॉट सैनिकों को शामिल कर लिया है। जबकि सच्चाई यह है कि पूर्वी लद्दाख समेत कहीं भी वास्तविक निंयत्रण रेखा (LAC) की रखवाली में एक भी रोबॉटिक सोल्जर तैनात नहीं है। -40 डिग्री सेल्सियस तक ठंड में टिक नहीं पाते चीनी सैनिक भारतीय सुरक्षा बलों के उच्चपदस्थ सूत्रों ने शुक्रवार को कहा कि सीमाओं पर चीन की तरफ कहीं भी रोबॉट सैनिक नहीं दिखा है। उन्होंने कहा कि पीएलए सैनिकों को असीम ठंड का सामना करने में नानी याद आ रही है, इसलिए अगर उसने रोबॉट सैनिक बना लिए तो उसके लिए ठीक ही होगा। दरअसल, चीनी सेना के शीर्ष अधिकारी लगातार दूसरे वर्ष अपने सैनिकों को भारतीय सीमा पर माइनस 20 से माइनस 40 डिग्री सेल्सियस ठंड में तैनात रहने को मजबूर कर रहे हैं जबकि ये सैनिक इतनी ठंड में रहने को अभ्यस्त नहीं हैं। बैरकों से निकल नहीं पाते चीनी सैनिक भारतीय सुरक्षा बलों के सूत्रों ने कहा कि अभी सीमा पर बंदूक लिए किसी रोबॉट की तैनाती नहीं पाई गई है। हालांकि, चीन को इसकी बहुत जरूरत है क्योंकि चिलचिलाती ठंड में तैनाती उसके सैनिकों की जान पर बन आई है। कई जगहों पर तापमान इतना नीचे चला गया है कि चीनी सैनिक अपने बैरकों से निकलने का साहस नहीं कर पा रहे हैं। कई जगहों पर वो बैरकों से बाहर आते भी हैं तो तुरंत वापस अंदर चले जाते हैं। ठंड में पीएलए की हालत पतली चीनी सैनिकों को पिछले साल भी इसी कठिन हालात का सामना करना पड़ा था। तब पीएलए को भारतीय सीमा पर तैनात अपने 90% सैनिकों को बदलना पड़ा था क्योंकि वो ठंड के कारण बीमार पड़ गए थे और तरह-तरह की परेशानियों से तंग आ गए थे। यहां तक कि पैंगोंग झील इलाके में संघर्ष की जगह पर भी चीनी सैनिकों को हर दिन बदल दिया जाता था और काफी ऊंचाई वाले उस इलाके में चीनी सैनिकों की गतिविधियां भी काफी सीमित कर दी गई थीं। भारतीय सैनिक विपरीत परिस्थितियों के लिए अभ्यस्त इधर, भारतीय सैनिक ऊंचाई वाले इलाकों में न केवल तैनाती को पूरी तरह अभ्यस्त है बल्कि पहाड़ी इलाकों में युद्ध लड़ने में माहिर है। भारतीय सैनिकों के पास बिल्कुल विपरीत प्राकृतिक वातावरण में खुद को ढाल लेने की अद्भुत क्षमता हासिल है। यही वजह है कि भारतीय सेना अपनी सैन्य टुकड़ियों को लगातार दो सालों के लिए ऊंची चोटियों पर तैनात करती है और उनमें 40 से 50 प्रतिशत सैनिकों को हर साल बदला जाता है।
No comments:
Post a Comment