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Food New York TimesBy BY NIKITA RICHARDSON Via NYT To WORLD NEWS

Sunday, May 16, 2021

शख्सियत: कहीं क्रिकेटर तो कहीं बैंकर के हैं जलवे

चुनाव के दौरान ममता बनर्जी जब बीजेपी से घिरी हुई थीं और कई विश्वासपात्र सहयोगी साथ छोड़ रहे थे, तो उन्होंने एक बड़ा दांव खेला था। क्रिकेटर मनोज तिवारी को पार्टी का टिकट दिया। जीत के बाद मनोज अब उनकी कैबिनेट में मंत्री हैं। उधर तमिलनाडु में स्टालिन ने करीब तीन दशक तक बैंकर के रूप में कार्य कर चुके पलानीवेल त्यागराजन को दोबारा टिकट दिया। वह भी चुनाव जीत गए। अब वह स्टालिन सरकार में वित्त मंत्री हैं। दोनों के बारे में बता रहे हैं नरेन्द्र नाथ : बड़ा क्रिकेटर बनना चाहते थे मनोज मनोज तिवारी क्रिकेट में अपना करियर बनाना चाहते थे। उनकी ख्वाहिश कामयाबी की ऊंचाइयों को छूने की थी, लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। 2006-07 में बंगाल के लिए रणजी ट्रॉफी में धमाकेदार प्रदर्शन से अपना क्रिकेट का सफर शुरू करने वाले मनोज तिवारी को भारत के लिए खेलने का उतना मौका नहीं मिला, जितनी क्षमता उनमें दिखती थी। उनके बारे में कहा जाता है कि वह भारतीय क्रिकेट टीम की ‘राजनीति’ का शिकार हो गए। इसी महीने जब वह बंगाल में ममता बनर्जी की कैबिनेट में मंत्री बनाए गए तो भारतीय क्रिकेट टीम के स्टार स्पिनर रह चुके हरभजन सिंह के ट्वीट से उनकी व्यथा को समझा जा सकता है। हरभजन ने ट्वीट किया था, ‘बधाई हो मनोज तिवारी। जो रुकावटें आपने अपने करियर में फेस कीं (एक दमदार खिलाड़ी होने के बावजूद), मुझे उम्मीद है कि कोई और क्रिकेटर वैसे कंटीले रास्तों से नहीं गुजरेगा। भगवान आप पर कृपा करें। शुभकामनाएं।’ 36 साल के हो चुके मनोज तिवारी को बंगाल चुनाव के समय जब ममता बनर्जी ने टीएमसी में आने का न्यौता दिया, तो वह उनके साथ हो गए। चुनाव भी जीते और पहले टर्म में ही ममता बनर्जी ने उन्हें खेल और युवा मामलों के मंत्रालय का मंत्री बना दिया। हालांकि ममता के न्यौते से पहले बीजेपी की तरफ से भी उन्हें ऑफर मिला था, लेकिन खुद मनोज तिवारी कहते हैं कि वह कभी खुद को बीजेपी की विचारधारा से जोड़ नहीं पाए, इसलिए जब उन्हें पार्टी में शामिल होने के लिए बीजेपी ने न्योता दिया, तो उनके पास उन्हें मना करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। वैसे सुशांत को न्याय दिलाने के लिए जब वह सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय हुए थे, तो राजनीतिक गलियारों में यह कयास लगने शुरू हो गए थे कि वह बीजेपी में शामिल हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने बीजेपी को नहीं चुना। वैसे कहा जाता है कि अगर सौरव गांगुली बीजेपी में शामिल हो जाते तो मनोज तिवारी उस प्रस्ताव को ठुकरा नहीं पाते, क्योंकि सौरव के साथ उनके रिश्ते बहुत ही अच्छे माने जाते हैं। सौरव के भी बीजेपी में शामिल होने के कयास लग रहे थे, लेकिन जब सौरव ने भी मना कर दिया, तो मनोज अपने फैसले के लिए स्वतंत्र हुए। 2006 के रणजी फाइनल में सौरव गांगुली के साथ उनकी पारी घरेलू क्रिकेट की बेहतरीन साझेदारियों में एक मानी जाती है। 2015 में भी वह तब सुर्खियों में आए थे जब दिल्ली के तत्कालीन कप्तान और मौजूदा बीजेपी सांसद गौतम गंभीर से उनकी मैदान पर तीखी बहस हुई थी। मनोज तिवारी ऐसे क्रिकेटर रहे हैं जिन्हें एक मैच में शतक मारने के बाद अगले मैच में टीम से ही हटा दिया गया था। हावड़ा में जन्म लेने वाले मनोज तिवारी की पत्नी सुष्मिता रॉय सोशल मीडिया पर एक जाना पहचाना चेहरा हैं। 9/11 को ट्विन टावर में थे पलानीवेल 55 साल के पलानीवेल त्यागराजन राजनीति में आने से पहले तीन दशक तक करीब 55 देशों की बड़ी कंपनियों में आर्थिक-निवेश सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं। वह अमेरिका में लीमैन ब्रदर्स, हांगकांग में स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक जैसी नामी संस्थाओं में शीर्ष पदों पर काम कर चुके हैं। चूंकि राजनीति का इनके परिवार से पुराना नाता रहा है, इसलिए बाद के वर्षों में इन्होंने भी राजनीति में आने का फैसला किया। इनके पिता पीटीआर पलानीवेल राजन तमिलनाडु के बड़े नेता माने जाते थे। वह विधानसभा स्पीकर भी रह चुके हैं। उनका निधन 2006 में हो गया था। दादा 4 अप्रैल 1936 से 24 अगस्त 1936 तक मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। पिता के निधन के बाद ही त्यागराजन ने भारत लौटने और राजनीति में सक्रिय होने का फैसला किया। इनकी पत्नी अमेरिकन हैं। जब वह तमिलनाडु लौटे तो उनके पास राजनीति का बहुत अनुभव नहीं था। कहते हैं कि जब शुरू में अमेरिकी अंग्रेजी और तमिल को मिक्स कर लोगों से संवाद किया तो हल्की परेशानी हुई, लेकिन जल्द ही वह लोगों से जुड़ गए। 2016 में पहली बार विधायक बने। 2016 के चुनाव में भी कहा जा रहा था कि अगर डीएमके सत्ता में आए्गी तो वही वित्त मंत्री बनेंगे, लेकिन उस समय डीएमके को सत्ता नहीं मिल पाई थी। आखिरकार इस बार स्टालिन सरकार में वह वित्त मंत्री बन ही गए। हालांकि पी. त्यागराजन को राजनीति में आने का रास्ता स्टालिन के पिता करुणानिधि ने दिखाया था। उन्होंने ही उनके पिता की विरासत को आगे ले जाने का पहला प्रस्ताव दिया था, लेकिन डीएमके में चल रहे सत्ता संघर्ष का असर उन पर पड़ा। कुछ समय के लिए वह विदेश लौट गए। 2015 में उन्हें दोबारा बुलाया गया। तब से वह स्टालिन के साथ हैं। वह स्टालिन के सबसे करीबी नेताओं में माने जाते हैं। त्यागराजन ने अपने पिता के साथ बचपन में कई नेताओं को नजदीक से देखा। कई बार पिता के कैंपेन के दौरान परदे के पीछे से रणनीति बनाने में भी वह अपना योगदान देते थे। इनकी शुरुआती शिक्षा चेन्नै के लॉरेंस स्कूल में हुई। फिर तिरुचिरापल्ली से बीटेक की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू यॉर्क और अमेरिका में ही एमआईटी से हायर एजुकेशन ली। 2001 में 9 सितंबर को जब न्यू यॉर्क के ट्विन टावर पर हमला हुआ था, तब वह उसी बिल्डिंग में काम कर रहे थे। हमले में वह बाल-बाल बचे थे। तमिलनाडु में उनसे बहुत उम्मीद की जा रही है। कहा जा जा रहा है कि कोविड संक्रमण से जब आर्थिक प्रगति पर ब्रेक लग गया है तो त्यागराजन का वित्तीय क्षेत्र का अनुभव राज्य को प्रगति के पथ पर ले जा सकता है।

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