Thursday, December 24, 2020

'गीत नया गाता हूं'... अटल बिहारी की वो 3 कविताएं जो हार मानना नहीं सिखाती

पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की 96वीं जयंती है। अटल बिहारी एक सशक्त राजनेता के साथ-साथ एक सहृदय कवि भी थे। अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनेता के तौर पर जितने सराहे गए हैं, उतना ही प्यार उनकी कविताओं को भी मिला है। वाजपेयी की कविताएं हमें जीवन में निरंतर आगे बढ़ने और हार नहीं मानने की प्रेरणा देती हैं। अगर अटल जी की कविताओं को हम वास्तविकता में अपने जीवन में उतार लें तो हमारा आत्मविश्वास कभी नहीं डिग सकता। आज यहां हम आपको अटल बिहारी की तीन ऐसी ही कविताओं के बारे में बताने जा रहे है।

Atal Bihari Birthday: 'गीत नया गाता हूं', 'मौत से ठन गई' और 'कदम मिलाकर चलना होगा' अटल बिहारी वाजपेयी की ऐसी कविताएं हैं जो इंसान को जीवन में हार नहीं मानने की सलाह देती हैं।


'गीत नया गाता हूं'... अटल बिहारी की वो 3 कविताएं जो हार मानना नहीं सिखाती

पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की 96वीं जयंती है। अटल बिहारी एक सशक्त राजनेता के साथ-साथ एक सहृदय कवि भी थे। अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनेता के तौर पर जितने सराहे गए हैं, उतना ही प्यार उनकी कविताओं को भी मिला है। वाजपेयी की कविताएं हमें जीवन में निरंतर आगे बढ़ने और हार नहीं मानने की प्रेरणा देती हैं। अगर अटल जी की कविताओं को हम वास्तविकता में अपने जीवन में उतार लें तो हमारा आत्मविश्वास कभी नहीं डिग सकता। आज यहां हम आपको अटल बिहारी की तीन ऐसी ही कविताओं के बारे में बताने जा रहे है।



गीत नया गाता हूं... दो अनुभूतियां
गीत नया गाता हूं... दो अनुभूतियां

पहली अनुभूति

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं

टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर

अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद

मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

दूसरी अनुभूति

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर

पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर

झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात

प्राची में अरुणिमा की रेख देख पता हूं

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी

अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी

हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं

गीत नया गाता हूं



कदम मिलाकर चलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा

बाधाएं आती हैं आएं

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पावों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

निज हाथों में हंसते-हंसते,

आग लगाकर जलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

हास्य-रूदन में, तूफानों में,

अगर असंख्यक बलिदानों में,

उद्यानों में, वीरानों में,

अपमानों में, सम्मानों में,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,

पीड़ाओं में पलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

उजियारे में, अंधकार में,

कल कहार में, बीच धार में,

घोर घृणा में, पूत प्यार में,

क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,

जीवन के शत-शत आकर्षक,

अरमानों को ढलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,

प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,

सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,

असफल, सफल समान मनोरथ,

सब कुछ देकर कुछ न मांगते,

पावस बनकर ढलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा

कुछ कांटों से सज्जित जीवन,

प्रखर प्यार से वंचित यौवन,

नीरवता से मुखरित मधुबन,

परहित अर्पित अपना तन-मन,

जीवन को शत-शत आहुति में,

जलना होगा, गलना होगा

क़दम मिलाकर चलना होगा



मौत से ठन गई
मौत से ठन गई

ठन गई!

मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,

यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,

जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,

लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,

सामने वार कर फिर मुझे आजमा।

मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,

आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,

नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,

देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।



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