Friday, January 21, 2022

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World New York TimesBy BY GAIA PIANIGIANI Via NYT To WORLD NEWS

Pakistan Blasphemy Laws: क्या है ईशनिंदा कानून? जिसकी वजह से पाकिस्तान में महिला को दी गई फांसी की सजा


पाकिस्तान में एक 26 साल की मुस्लिम महिला को ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा-ए-मौत दी गई है। अदालत ने एक आदेश जारी किया जिसके मुताबिक, 26 साल की अनीका अतीक को मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और उसके व्हाट्सएप स्टेटस के रूप में 'ईशनिंदा सामग्री' पोस्ट करने का आरोप लगाया गया था।

रावलपिंडी के गैरीसन शहर में अनीका अतीक की सजा की घोषणा की गई। सजा सुनाते हुए अदालत ने आदेश दिया कि 'मरने तक उस महिला को गर्दन से लटकाया जाए।' आपको बता दे कि इससे पहले इस महिला को 20 साल की जेल की सजा भी सुनाई गई थी।

अब आपको बताते हैं कि आखिर ये ईशनिंदा कानून है क्या। ईशनिंदा का मतलब है ईश्‍वर की निंदा... अगर कोई इंसान जानबूझकर पूजा करने की जगह को नुकसान पहुंचाता है, धार्मिक कार्य में बाधा पहुंचाता है, धार्मिक भावनाओं का अपमान करता है या इन्‍हें ठेस पहुंचाता है तो यह ईशनिंदा के दायरे में आता है।

ईशनिंदा कानून के मुताबिक, इस्‍लाम या पैगंबर मुहम्‍मद के खिलाफ कुछ भी बोलने या करने पर मौत की सजा का प्रावधान है। अगर मौत की सजा नहीं दी जाती है तो आरोपी को जुर्माने के साथ आजीवन कारावास झेलना पड़ सकता है। इस कानून की नींव ब्र‍िट‍िश शासनकाल में पड़ी थी।

जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल में पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून को लागू किया गया। पाकिस्तान पीनल कोड में सेक्शन 295-बी और 295-सी जोड़कर ईशनिंदा कानून बनाया गया। 1860 में ब्रिटिश शासन ने धर्म से जुड़े अपराधों के लिए कानून बनाया था जिसका विस्तारित रूप आज का पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून है।

ब्रिटिश सरकार के ईशनिंदा कानून का मकसद धार्मिक हिंसा को रोकना था। 1927 में ब्रिटिश शासकों ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने को भी अपराध की श्रेणी में रखा। एक खास बात यह थी कि इस कानून में धर्मों के बीच भेदभादव नहीं किया गया था।

पाकिस्तान के सैन्य शासक जिया-उल-हक ने ईशनिंदा कानून में कई प्रावधान जोड़े। उसने 1982 में ईशनिंदा कानून में सेक्शन 295-बी जोड़ा और इसके तहत मुस्लिमों के धर्मग्रंथ कुरान के अपमान को अपराध की श्रेणी में रखा गया।

इस कानून के मुताबिक, कुरान का अपमान करने पर आजीवन कारावास या मौत की सजा हो सकती है। 1986 में ईश निंदा कानून में धारा 295-सी जोड़ी गई और पैगंबर मोहम्मद के अपमान को अपराध की श्रेणी में रखा गया जिसके लिए आजीवन कारावास की सजा या मौत की सजा का प्रावधान था।

शरीया कोर्ट ने इस कानून को और सख्त बना दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि पैगंबर मोहम्मद के साथ-साथ अन्य पैगंबरों के अपमान को भी अपराध की श्रेणी में रखा जाए और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ मौत की सजा का प्रावधान हो।

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